नवरात्री पूजन हिन्दुओ के द्वारा मनाया जाने वाला एक बहुत ही महत्वपूर्ण त्योहार और सनातन धर्म है| नवरात्री में विशेष रूप से माँ दुर्गा की पूजा की जाती है| नवरात्री का मतलब नौ रातें जिसके दौरान दुर्गा के नौ रूपों की पूजा की जाती है जिनकी अलग नाम से माता जी के मंत्र पढ़ा जाता है| यह भारत के बिभिन्य राज्यों में मनाया जाता है| दुर्गा पूजा मानाने को लेकर अलग अलग लोगो की अलग अलग मान्यताये है| नवरात्री के 10 वें दिन दशहरा मनाया जाता है|
नवरात्री वर्ष मे 2 मुख्य रूप से मनाई जाती है, एक तो जो पित्र पक्ष के समाप्त होने के तुरंत आश्विन मास मे प्रारंभ होती है तथा दूसरी जो की हिंदू केलिन्डर के अनुसार नववर्ष चैत्र मे मनाई है| ऐसे वर्ष मे 4 नवरात्री होती है लेकिन २ मुख्य नवरात्रि तथा 2 गुप्त नवरात्रि होती है| वैसे इन सभी नवरात्रि मे से आश्विन मास की नवरात्रि आती है इसकी ज्यादा ही मह्त्व है, केवल इसी समय माँ दुर्गा की मूर्ति पूजन की जाती है| इसी नवरात्रि मे विभिन्न स्थानो पर माँ दुर्गा की सुंदर प्रतिमा बनाकर बिधिवत पूजा की जाती है|
नवरात्री नव दुर्गा रूप पूजन विधि एवम महत्त्व:
नवरात्री में विशेष रूप से नौ दिन तक माता दुर्गा, लक्ष्मी एवम सरस्वती देवी का पूजा किया जाता हैं|
शारदीय नवरात्री की शुरुआत 03 अक्टूबर 2024, से होकर 12 अक्टूबर 2024, को समाप्त होगी|
शरद नवरात्री – यह मुख्य और महत्वपूर्ण नवरात्री है, जिसे महा नवरात्री भी कहते है| नवरात्री की शुरुआत आश्विन शुक्ल पक्ष से होती हैं एवम नौ दिन तक मनाया जाती हैं| जिसके बाद दशवे दिन दशहरा मनाया जाता हैं| शरद माह में आती है इसलिए इसे शारदीय नवरात्री भी कहते है|
चैत्र नवरात्री चैत्र माह के शुक्ल पक्ष में नवरात्री आती है, इसलिए हमलोग बसंत नवरात्री भी कहते है| इस नवरात्री के साथ हिन्दू कैलेंडर के अनुसार नवबर्ष की भी शुरुवात होती है| यह मार्च या अप्रैल के महीने पार्टी है| इस नवरात्री में माता दुर्गा के बिभिन्य रूप को नवो दिन पूजा होती है एवं नवे दिन रामनवमी का त्यौहार मनाया जाता है| यह नवरात्री उत्तरी भारत में बहुत प्रसिद्ध है|
नवरात्री में नव दुर्गा पूजा की महत्व :
नवरात्री में दुर्गा पूजा अलग अलग कारन से मनाये जाते है, कई लोगो की मान्यता है, कि देवी दुर्गा ने नवरात्री में ही सबसे बड़े महिशासुर नामक राक्षस का वध किया थी| इसलिए बुराई पर अच्छाई के प्रतीक के रूप मे दुर्गा पूजा मनाई जाती है| कुछ लोगो की मान्यता है की वर्ष मे यही वह 9 दिन होते है, जब माता अपने मायके आती है इसलिए साल के यह 9 दिन उत्सव मनाये जाते है| नव रुपी माता दुर्गा की पूजा पुरे भारत में किये जाते है लेकिन कुछ राज्यो में जैसे बंगाल मे बहुत धूम धाम से मनाया जाता है| बंगाल में बिशेष प्रकार की मूर्तिया, भब्य पंडाल तथा दुर्गा पूजा को लेकर सारे इंतजाम होते है जिसके वजह पुरे भारत के साथ साथ अन्य देशो मे भी पच्छिम बंगाल की दुर्गा पूजा बहुत ही प्रसिद्ध है | पुरे भारत में, इन 9 दिनो मे देवी के 9 रूपो की पूजा की जाती है|
नवरात्री के नव दुर्गा नौ अवतार :
माता शैलपुत्री : प्रथम दिन माता शैलपुत्री की पूजा का होता है| यह देवी दुर्गा का नव रूप में से पहला स्वरूप है| माता दुर्गा ने अपने शैलपुत्री रूप मे शैलपुत्र हिमालय के घर जन्म लिया थी| माता अपने इस रूप मे वृषभ पर स्थित है उनके इस रूप में एक हाथ मे त्रिशूल और दूसरे हाथ मे कमल का फूल है| हिन्दू समाज मान्यता यह है की माता शैलपुत्री रूप की पूजा मनोकामना पूरा करने तथा अच्छी सेहत के लिए किया जाता है|
मंत्र:- वन्देवांछितलाभायचंद्राद्र्धकृतशेखराम। वृषारूढ़ा शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीम।।
माता ब्रांहमचारिणी : नवरात्री के दूसरा दिन माता ब्रहमचारिणी की पूजा की जाती है| माता दुर्गा के दूसरा अवतार है, इस रूप में माँ मे भगवान शिव को पाने के लिए कठोर तपश्या कि थी| दुर्गा देवी ने अपने इस रूप मे एक हाथ मे कमंडल और दूसरे हाथ मे जाप की माला धारण किये बिराजमान रही थी| इस दिन माता ब्रहमचारिणी को शक्कर का भोग लगाया जाता है और शक्कर को ही दान किया जाता है| मान्यता ये है कि माता ब्रह्मचारिणी की पूजा और साधना करने से कुंडलिनी शक्ति जागृत होती है।
मंत्र:- या देवी सर्वभूतेषु ब्रह्मचारिणी रूपेण संस्थिता | नमस्तसयै, नमस्तसयै, नमस्तसयै नमो नम: |
माता चंद्रघंटा : नवरात्री के तीसरे दिन माता चंद्रघंटा की आराधना की जाती है, ये माँ दुर्गा की तीसरे रूप आयी थी| कहा जाता है की माँ चंद्रघंटा देवी का उग्र रूप है लेकिन फिर भी देवी के इस रूप को भी भक्तो के द्वारा पूजा करने से सभी कष्टो से मुक्ति मिलती है| माँ के इस स्वरूप में १० हाथ है और सभी हाथो मे माँ ने शस्त्र धारण किए हुवे रहती है|
जब माता दुर्गा आपने तीसरे चंद्रघंटा रूप में महिषासुर के साथ युद्ध की थी, तब माता ने घंटे की टंकार से असुरों का नाश कर दि थी। इसलिए नवरात्रि के तीसरे दिन माता के इस चंद्रघण्टा रूप का पूजन किया जाता है।
मां चंद्रघंटा नाद की देवी हैं इसलिए इनकी अनुकम्पा से साधक स्वर विज्ञान यानी गायन में परिपूर्ण होता है और मां चंद्रघंटा की जिस पर आशिर्बाद होती है, उसका स्वर काफी मधुर होता है|
मंत्र:- पिण्डज प्रवरारूढ़ा चण्डकोपास्त्रकैर्युता। प्रसादं तनुते महयं चन्दघण्टेति विश्रुता।।
माता कृषमांडा: नवरात्रि के चौथे दिन माता कृषमांडा की पूजन की जाती है| ऐसा मान्यता है कि माता के इस स्वरूप मे मंद-मंद मुस्कान से ब्रहमांड की उत्पति हुई थी| देवी के इस स्वरूप मे सात हाथ होती है और उनके सभी सतो हाथो मे कमंडल, धनुष बांड, कमल, अमृत कलश, चक्र तथा गदा लिए हुये रहती है| यह माला माता के भक्तो को उनकी इच्छा अनुसार वरदान प्रदान करती है|
माता कृषमांडा हमेशा सिंह पे पर सवार रहती हैं। देवी कुष्मांडा का उत्पति सूर्यमंडल के अंदर के लोक में हुवा है जहां निवास करने से क्षमता और शक्ति मिली है। इनकी पूजा करने से आयु, यश, बल और आरोग्य की वृद्धि होती है।
मंत्र:-या देवी सर्वभूतेषु माँ कूष्माण्डा रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।
माता स्कंदमाता : नवरात्री मे पाचवे दिन माता स्कंदमाता देवी स्वरूप की पूजा होती है| माता के इस स्वरूप को पूजा करने से उनके भक्तो की सारे पापो से मुक्ति मिलती है तथा मोक्ष की प्राप्ति होती है| देवी स्कन्द माता ही हिमालय की पुत्री पार्वती हैं, जिन्हें माहेश्वरी और गौरी के नाम से भी जाना जाता है। ये पर्वत राज की पुत्री होने की वजह से पार्वती कहलाती हैं| नवरात्रि के इस दिन माता स्कंदमता को अलसी नामक औषधि अर्पण करने से सेशनल बीमारी नहीं होती और इंसान स्वस्थ रहता है| माता के इस स्वरूप मे माता रानी कमल पर विराजमान है| माता अपने इस रूप मे चार भुजाओ विराजमान होती है और अपने दो हाथो मे कमल लिए हुये रहती है| तीसरे हाथ मे मलाजप लिए हुये रहती है तथा चौथे हाथ से भक्तो को आशीर्वाद दे रही होती है|
मंत्र:- या देवी सर्वभूतेषु माँ स्कंदमाता रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।
माता कात्यानि : नवरात्री के षष्टम दिन माता कात्यायनी के स्वरूप में पूजा की जाती है| माता कात्यायनी के इस स्वरूप को कत्यान ऋषि ने अपनी घोर तपस्या से प्राप्त किया था तथा माता कात्यायनी ने अपने इसी स्वरूप मे महिशासुर का वध किया थी, मान्यता यह है की कृष्ण भगवान को अपने पति के रूप मे पाने के लिए गोपियो ने यमुना के तट पर इसी रूप का पूजन की थी| अगर कोई भी कुवारी इस देवी की सच्चे मन से पूजा करे तो उसकी विवाह मे आने वाली सभी बधाये दूर हो जाती है और उसे मनचाहा वर मिलता है| मां कात्यायनी शत्रुहंता है इसलिए इनकी पूजा करने से शत्रु पराजित होते हैं और जीवन सुखमय बनता है।
मंत्र:- या देवी सर्वभूतेषु माँ कात्यायनी रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।
माता कालरात्री : नवरात्रि के सातवे दिन माता कालरात्रि देवी के स्वरूप की पूजा जाती है| कुछ लोग देवी कालरात्रि को कालि देवी समझ लेते क्योकि इस रूप में सबसे क्रूर,सबसे भयंकर रूप में दिखती है लेकिन ऐसा नहीं है दोनों ही देवी के अलग अलग रूप है| कालरात्रि देवी का बहुत ही भयानक स्वरूप है और अपने इस स्वरूप मे एक हाथ मे त्रिशूल और दूसरे हाथ मे खड़ग लिए हुये रहती है| माता कालरात्रि ने अपने गले मे भी ख़रगो की माला पहनी हुई रहती है|
माँ कालरात्रि पापियों का विनाश करने वाली देवी हैं। दानव, भूत, प्रेत, दैत्य, राक्षस आदि इनके स्मरण मात्र से ही डरकर भाग जाते हैं। ये नछत्र-बाधाओं को भी दूर करती है| इनके उपासकों को अग्नि-भय, जल-भय, जंतु-भय, शत्रु-भय, रात्रि-भय आदि कभी नहीं होते।
मंत्र:- या देवी सर्वभूतेषु माँ कालरात्रि रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।
माता महागौरी: नवरात्री के आठवे दिन माँ महागौरी की पूजा का पूजा की जाती है| ये माता की बहुत ही सौम्य, सरल तथा सुंदर रूप है| माता महागौरी अपने इस रूप मे वृषभ पर विराजमान है| माता महागौरी एक हाथ मे त्रिशूल और दूसरे हाथ में डमरू लि हुवी रहती है तथा अन्य दो हाथो से वह अपने भक्तो को वरदान दे रही होती हैं| मान्यता यह है की मां महागौरी की उत्पत्ति के संदर्भ में की भगवान शिव को पति रूप में पाने के लिए देवी ने घोर तपस्या की थी जिसके कारन इनका शरीर काला पड़ गया था। देवी की तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव इन्हें स्वीकार किये और शिव जी इनके शरीर को गंगा-जल से धो दिए, जिससे देवी विद्युत के समान अत्यंत कांतिमान गौर वर्ण की हो जाई जिसकी कारन इनका नाम गौरी पड़ा। यह धन-वैभव और सुख-शान्ति की अधिष्ठात्री देवी है।
मंत्र:- सर्वमंगल मंग्ल्ये, शिवे सर्वार्थ साधिके। शरण्ये त्र्यम्बके गौरि नारायणि नमोस्तुते”।।
माता सिध्दीदात्री: नवरात्री के नौवे दिन माता सिध्दीदात्री की पूजा की जाती है| इन्ही के पूजा के साथ नवरात्री पूजा सम्पन्न होती है तथा भक्तो को समस्त सिद्धधी प्राप्त होती है| माता के इस स्वरूप मे माता कमल पर विराजमान रहती है लेकिन कहा जाता है कि माता सिध्दीदात्री सिह की सवारी करती है| यह देवी भगवान विष्णु की अर्धांगिनी हैं और नवरात्रों की अधिष्ठात्री हैं। इसलिए मां सिद्धिदात्री को ही जगत को संचालित करने वाली देवी कहा गया है। इस रूप मे माता के चार हाथ है इन चारो हाथो मे शंख, चक्र, गदा और कमल विराजमान होता है |
मंत्र:- या देवी सर्वभूतेषु लक्ष्मी रूपेण संस्थिता | नमस्तसयै, नमस्तसयै, नमस्तसयै नमो नम: |