डॉ० राजेन्द्र प्रसाद’ का जन्म 3 दिसंबर, 1884 को बिहार के एक छोटे से गांव जीरादेई में हुआ था। उनके पिता का नाम महादेव सहाय था जो संस्कृत एवं फारसी के विद्वान थे। उनकी माता कमलेश्वरी देवी एक धर्मपरायण महिला थीं। उनका विवाह बाल्य काल में ही, लगभग 13 वर्ष की उम्र में, राजवंशी देवी से हो गया।
डॉ० राजेन्द्र प्रसाद की प्रारंभिक शिक्षा छपरा के जिला स्कूल में हुई। आगे की पढ़ाई उन्होंने पटना में जारी रखी। सन् 1902 में उन्होंने कोलकाता के प्रसिद्ध प्रेसिडेंसी कॉलेज में दाखिला लिया। 1915 में उन्होंने स्वर्ण पदक के साथ विधि परास्नातक की परीक्षा पास की और बाद में विधि के क्षेत्र में ही उन्होंने डॉक्ट्रेट की उपाधि भी हासिल की।
डॉ० राजेन्द्र प्रसाद भारतीय स्वाधीनता आंदोलन के प्रमुख नेताओं में से थे जिन्होंने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष के रूप में प्रमुख भूमिका निभाई। उन्होंने भारतीय संविधान के निर्माण में भी अपना योगदान दिया था। वे स्वतंत्र भारत के प्रथम राष्ट्रपति थे। उन्होंने 12 वर्षों तक राष्ट्रपति के रूप में कार्य करने के पश्चात वर्ष 1962 में अपने अवकाश की घोषणा की। सम्पूर्ण देश में अत्यन्त लोकप्रिय होने के कारण उन्हें ‘राजेन्द्र बाबू’ या ‘देशरत्न’ कहकर पुकारा जाता था।
डॉ० राजेन्द्र प्रसाद का देहांत 28 फरवरी, 1963 में हुआ। उनके उत्कृष्ट कार्यों के लिए भारत सरकार द्वारा वर्ष 1962 में उन्हें देश के सर्वोच्च सम्मान भारत रत्न से सम्मानित किया गया था। अपने चट्टान सदृश्य आदर्शों एवं श्रेष्ठ भारतीय मूल्यों के लिए राष्ट्र के लिए वे सदैव प्रेरणाश्रोत बने रहेंगे।
डॉ राजेंद्र प्रसाद के प्रमुख तथ्य –
डॉ. राजेंद्र प्रसाद का जन्म बिहार के सीवान में Zeradai गांव में 3 दिसंबर, 1884 में हुआ था।
5 साल की उम्र में, उन्हें फारसी, हिन्दी और गणित सीखने के लिए एक Moulavi के मार्गदर्शन में रखा गया था।
कलकत्ता विश्वविद्यालय में अपनी स्नातक स्तर की पढ़ाई के लिए उन दिनों, वह ईडन हिंदू हॉस्टल में रहते थे । वे अर्थशास्त्र का छात्र था।
राजेंद्र प्रसाद 1906 में पटना कॉलेज के हॉल में बिहारी छात्र सम्मेलन के गठन में अहम भूमिका निभाई।
एक स्वर्ण पदक विजेता थे, वह 1937 में इलाहाबाद विश्वविद्यालय से Doctorate in Law पूरा किया।
राजेंद्र प्रसाद ने आधिकारिक तौर पर अपनी वार्षिक कलकत्ता में आयोजित सत्र के दौरान, 1911 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में शामिल हो गए।
वे अंग्रेजों द्वारा कई बार जेल गए – एक बार १९३१ नमक सत्याग्रह आंदोलन में भाग लेने के लिए और एक बार 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन के एक सक्रिय सदस्य होने के लिए।
डॉ प्रसाद संविधान सभा (1948-1950) कि एक गणतंत्र राज्य के रूप में भारत के लिए संविधान का मसौदा तैयार के राष्ट्रपति बन गए।
संविधान सभा के पिछले सत्र के दौरान, वह सर्वसम्मति से अंतरिम सरकार के द्वरा भारत की राष्ट्रपति बनाए गया थे ।
वे सर्वोच्च राष्ट्रीय सम्मान Bharat Ratna सम्मानित किया गए थे !