छठ पूजा के बारे में : छठ पूजा एक मनोकमना पूरी होने वाली हिंदू त्यौहार है जो हर साल लोगों द्वारा बहुत उल्लाश, श्रद्धा और उत्सुकता के साथ मनाया जाता है। ये त्यौहार बिहार, झारखण्ड, वेस्ट बंगाल, छत्तीसगढ़, उत्तर प्रदेश और भी कुछ राज्यों के लोग पूजा करते है| छठ पूजा सिवान, छपरा, गोपालगंज,औरंगाबाद, देहरी-ओन-सोने, पटना, देव और गया में बहुत प्रसिद्ध है। अब ये पूरे भारत में मनाया जाता है। ये हिंदू के सनातन धर्म का बहुत प्राचीन त्यौहार है, जो ऊर्जा के परम परमेश्वर के लिए समर्पित पूजा है जिन्हें सूर्य या सूर्य षष्ठी या छठ पूजा के रूप में जाना जाता है। हमलोग हमेशा सुखी जीवन के लिए भगवान सूर्य को प्राथना करने लिये ये त्यौहार मनाते हैं। लोग बहुत उत्साह से छठ पूजा के दिन भगवान सूर्य की पूजा करते हैं और अपने परिवार के सदस्यों, दोस्तों और बूढ़े लोग के अच्छे से सुखी, स्वस्थ और मनोकामना के लिए प्रार्थना करते हैं।
छठ पूजा दिन सुबह उठकर पवित्र गंगा में स्नान कर पूरे दिन निर्जला उपवास रखते है, यहाँ तक कि वो कुछ भी नहीं खाते और पीते और एक लम्बे समय तक गंगा और तालाब की पानी में खड़े रहते हैं। वो एक शाम डूबते सूर्य और अगले दिन सुबह उगते हुये सूर्य को सभी तरह की प्रसाद से अर्घ्य देते हैं। हिन्दू कलैण्डर के अनुसार छठ पूजा कार्तिक महाने (October या November महीने में ) के छठे दिन मनाया जाता है।
छठ पूजा साल में दो बार मनाया जाता है एक कार्तिक मास और दूसरा चैत्री छठ चैत्र के महीने (March या April) में होली के कुछ दिन बाद मनाया जाता है।
छठ पूजा की शुभ मुहर्त :
कार्तिक छठ पूजा 2024 की तिथि :
05 नवंबर, 2024 : नहाय खाय – सुबह स्नान पूजा और खाने का दिन है।
06 नवंबर, 2024 : उपवास का प्रथम दिन है जिसे खरना कहते है|
07 नवंबर, 2024 : उपवास का दूसरा दिन संध्या छठ पूजा, डूबते सूर्य को अर्घ्य|
08 नवंबर, 2024 : उगते हुए सूर्य को अर्घ्य, छठ पूजा का समापन और पारण
चैती छठ पूजा 2024 की तिथि :
नहाय-खाए : 12 अप्रैल
खरना-लोहंडा : 13 अप्रैल
सायंकालीन अर्घ्य : 14 अप्रैल
प्रात:कालीन अर्घ्य : 16 अप्रैल
छठ पूजन की सामग्री(Chhath Pujan Samagri) :
बॉस या पितल की सूप, बॉस के फट्टे से बने दौरा व डलिया, पानी वाला नारियल, गन्ना पत्तो के साथ, सुथनी, शकरकंदी, डगरा, हल्दी और अदरक का पौधा, नाशपाती, नींबू बड़ा, शहद की डिब्बी, पान सुपारी, कैराव, सिंदूर, कपूर, कुमकुम, चावल अक्षत के लिए, चन्दन और इसके अलावा घर पे बने हुवे पकवान जैसे खस्ता, पुवा, ठेकुवा जिसे कुछ क्षेत्रों में टिकरी भी कहते हैं, इसके अलावा चावल के लड्डू, जिसे लड़ुआ भी कहा जाता है, इत्यादि छठ पूजन के सामग्री में शामिल है ।
छठ व्रत विधि (Chhath Vrat Vidhi in Hindi) :
छठ पूजा की चार दिन तक उत्सव होता है। इसकी शुरुआत कार्तिक शुक्ल पक्ष चतुर्थी से होती है तथा समाप्ति कार्तिक शुक्ल पक्ष सप्तमी को होती है। इस दौरान व्रत करने वाले ब्रतधारी लगातार 36 घंटे का व्रत रखते हैं। इस दौरान वे निर्जला रहते है और कुछ भी ग्रहण नहीं करते है।
- प्रथम पड़ाव खाए नहाय : छठ पूजा व्रत चार दिन तक चलता है। इसके पहले दिन नहा खा की विधि से शुरू होती है। जिसमें ब्रतधारी को घर की सफाई कर एवं स्वयं शुद्ध होना चाहिए तथा केवल शुद्ध लौकी की सब्जी, चावल, दाल और रोटी की भोजन ही करना चाहिए।
2. दूसरा पड़ाव खरना : इसके दूसरे दिन खरना की विधि होती है। खरना के दिन व्रतधारी को पूरे दिन का निर्जला उपवास रखकर, शाम के समय गन्ने का रस या गुड़ में बने हुए चावल की खीर और शुध्य आते की रोटी साथ में शुद्ध घी लगाकर प्रसाद के रूप में खाना चाहिए। इस दिन बनी गुड़ की खीर बेहद पौष्टिक और स्वादिष्ठ होती है और इसे सभी लोगो में बाटकर प्रसाद के रूप में खानी चाहिए|
- तीसरा पड़ाव शाम का अर्घ्य : छठ पूजा के तीसरे दिन सूर्य षष्ठी को पूरे दिन निर्जला उपवास रखकर शाम के समय डूबते हुए सूर्य को अर्घ्य देने के लिए पूजा की सामग्रियों को लकड़ी या बास के डाले में रखकर नदी या तालाब के घाट पर ले जाना चाहिए और वहा जल में खड़े होकर पूजा करनी चहिये। शाम को सूर्य को अर्घ्य देने के बाद घर आकर सारा सामान वैसी ही रखना चाहिए। इस दिन रात के समय छठी माता की गीत गाई जाती है और घर में भी कोशी भरते है और पूजा किया जाता है साथ ही व्रत कथा सुननी चाहिए।
4. चोथा पड़ाव सुबह का अर्घ्य : छठ पूजा के चौथे दिन सुबह-सुबह सूर्य निकलने से पहले ही नदी या तालाब के घाट पर पहुंचना चाहिए। उगते हुए सूर्य की पहली किरण को जल में खरे होकर अर्घ्य देना चाहिए। इसके बाद घाट पर छठ माता को प्रणाम कर उनसे संतान-रक्षा और अपनी कोई मनोकामना हो तो मांगना चाहिए। अर्घ्य देने के बाद घर लौटकर सभी में प्रसाद वितरण करना चाहिए तथा स्वयं भी प्रसाद खाकर व्रत खोलना चाहिए।
छठ पूजा गाना :
छठ व्रत कथा (Chhath Vrat Katha) :
छठ व्रत कथा के अनुसार प्रियव्रत नाम के एक राजा थे और उनकी पत्नी का नाम मालिनी था। लेकिन राजा को कोई संतान न थी। इस बात को लेकर राजा और उनकी पत्नी बहुत दुखी रहते थे। उन्होंने एक दिन संतान प्राप्ति की इच्छा के लिए महर्षि कश्यप द्वारा पुत्रेष्टि यज्ञ करवाए। इस यज्ञ के सफल होने क कुछ दिन बाद रानी गर्भवती हो गई और नौ महीने बाद संतान सुख को प्राप्त करने का समय आया तो रानी को मरा हुआ पुत्र प्राप्त हुआ। इस बात का पता चलने पर राजा को बहुत दुख हुवे और संतान शोक में वह आत्म हत्या करने का मन बना लिए परंतु जैसे ही राजा ने आत्महत्या करने की कोशिश की उनके सामने एक देवी प्रकट हुईं।
देवी ने राजा को बोली कि “मैं षष्टी देवी हूं”। मैं लोगों को पुत्र का सौभाग्य प्रदान करती हूं। इसके अलावा जो सच्चे भाव से मेरी पूजा करता है मैं उनकी सभी प्रकार के मनोकामना पूर्ण कर देती हूं। यदि आप मेरी पूजा करोगे तो मैं तुम्हे पुत्र प्रदान करूंगी।” देवी की बातों सुनकर राजा प्रभावित हुवे और उनकी आज्ञा का पालन किये। राजा और उनकी पत्नी ने कार्तिक शुक्ल की षष्टी तिथि के दिन देवी षष्टी (छठी माता) की पूरे विधि -विधान से पूजा किये। इस पूजा के फलस्वरूप उन्हें नौ महीने बाद एक पुत्र की प्राप्ति हुई। तभी से छठ पूजा का पावन पर्व हिन्दुओ में मनाया जाने लगा।
छठ पूजा के संदर्भ में एक अन्य कथा के अनुसार जब पांडव अपना सारा राजपाट जुए में हार गए, तब द्रौपदी ने छठ व्रत रखा। इस व्रत के प्रभाव से उसकी मनोकामनाएं पूरी हुईं तथा पांडवों को राजपाट वापस मिल गया।
छठ पूजा की परंपरा और रीति-रिवाज :
यह माना जाता है कि छठ पूजा करने वाला व्रतधारी पवित्र होकर एवं संयम की अवधि के 4 दिनों तक अपने मुख्य परिवार से अलग हो जाता है। पूरी चार दिन के दौरान वह शुद्ध भावना के साथ एक स्वच्छ बस्त्र के साथ फर्श या बेड पर सोता है। सामान्यतः यह माना जाता है कि पुरे परिवार में सभ कुछ अच्छा रहा तो प्रत्येक साल पीढ़ी दर पीढ़ी छठ पूजा की जाती है|
भक्त छठ पर सभी तरह के फल, मिठाई, खीर और थेकुआ सहित बांस की छोटी टोकरी में सूर्य को प्रसाद अर्पण करते है। प्रसाद शुद्धता बनाये के साथ बनाये जाते है तथा नमक, प्याज और लहसुन को उपयोग करना बर्जित होता है।
छठ पूजा का महत्व:
छठ पूजा का सूर्योदय और सूर्यास्त के समय पूजा की जाती है तथा इसका विशेष महत्व है। वैज्ञानिक और ऋषि मुनि के अनुसार सूर्योदय और सूर्यास्त का समय दिन का सबसे महत्वपूर्ण समय भी मन जाता है जिसके दौरान शरीर को सुरक्षित रूप से बिना किसी नुकसान के सौर ऊर्जा प्राप्त हो सकती हैं। लेकिन हमारे सनातन धर्म को वैज्ञानिक मानते हुवे आपने कारण स्पष्ट करती है जबकि हमारी ये प्रथा सदियों से मनई जा रही है | छठ पूजा महोत्सव में सूर्य को संध्या अर्घ्य और विहानिया अर्घ्य देने का एक मिथक है। इस अवधि के दौरान सौर ऊर्जा में पराबैंगनी विकिरण का स्तर कम होता है तो यह मानव शरीर के लिए सुरक्षित है। लोग पृथ्वी पर जीवन को जारी रखने के साथ-साथ आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए भगवान सूर्य का शुक्रिया अदा करने के लिये छठ पूजा करते हैं।
छठ पूजा का परम्परा, हमारे शरीर और मन शुद्धिकरण द्वारा मानसिक शांति और शक्ति प्रदान करती है, ऊर्जा का स्तर और प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ता है, जलन क्रोध की आवृत्ति, साथ ही नकारात्मक भावना बहुत कम हो जाती है। इस तरह की मान्यताऍ और रीति-रिवाज छठ अनुष्ठान को हिंदू धर्म में सबसे महत्वपूर्ण त्यौहार बनाते हैं।