आजादी के इतिहास में स्वर्गीय उमाकान्त सिंह की शहादत दर्ज है| वे सिवान के नरेन्द्रपुर गांव के रहने वाले थे|
आज से ठीक 73 साल पहले 11 अगस्त 1942 को ही बिहार के सात सपूत अंग्रेजी हुकूमत द्वारा गोली चलने से शहीद हो गए थे। ये सभी स्कूली छात्र थे और वे 11 अगस्त को दो बजे दिन में पटना स्थित सचिवालय के सामने झंडा फहराने निकले थे जिसे अगस्त क्रांति से नहीं हम जानते है| इस ११ अगस्त को बिहार के शहीद सात सपूत की सहादत को याद करते है।
उस समय के पटना के जिलाधिकारी डब्ल्यू जी आर्थर के आदेश पर पुलिस ने १३ से १४ गोलियां चलाई थीं। ये सात सपूत थे उमाकांत प्रसाद सिंह, रामानंद सिंह, सतीश प्रसाद झा, जगपति कुमार, देवीपद चौधरी, राजेन्द्र सिंह और राम गोविंद सिंह।
इस अगस्त क्रांति अभियान का नेतृत्व देवीपद चौधरी कर रहे थे । उस समय उनकी उम्र 14 साल की थी। वे सिलहट (वर्तमान में बांग्लादेश) के जमालपुर गांव के रहने वाले थे। वे जब मोर्चा का नेतृत्व करते हुवे सचिवालय की ओर अपने छह साथियों के साथ बढ़ रहे थे तो अंग्रेजी हुकूमत के आदेश पे पुलिस ने उन्हें रोकना चाहा लेकिन वे रुकने वाले नहीं थे। देवीपद हाथ में तिरंगा थामे आगे बढ़ जा रहे थे तब पुलस ने उनपर गोली मार दी। देवीपद को गोली लगते ही वो जमीन पे गिर परे और उनको गिरते हुवे देख पटना जिले के ही दशरथा गांव के रामगोविंद सिंह आगे बढ़े और आपने हाथ में तिरंगा ले लिया। रामगोविंद सिंह उस समय पटना से सटे पुनपुन के हाईस्कूल में दसवीं कक्षा में पढ़ रहे थे।
ज्यो ही रामगोविंद सिंह तिरंगा हाथ में लिए आगे बढ़े तो पुलिस ने उन्हें भी गोली मारी दी। फिर तिरंगा को रामानंद सिन्हा ने थामा और उसे गिरने नहीं दिया और आगे सचिवालय की तरफ बढ़ने लगे| वे पटना जिले के १०वीं कक्षा के छात्र थे और पटना के ही रहने वाले। उनकी शादी हो चुकी थी। जब रामानंद को गोली लग गयी तब वे जमीं पे गिरने लगे देख राजेन्द्र सिंह आगे बढ़े और तिरंगा को हाथ में थामा । वे सारण जिले के दिघवारा के निवासी थे और पटना के गर्दनीबाग उच्च विद्यालय में पढ़ाई कर रहे थे। उनका भी विवाह हो चुका था। अंग्रेजी हुकूमत के पे पुलिस ने राजेन्द्र सिंह को भी गोली मर दी और वे भी गिरने लगे तभी तिरंगे उनके हाथ से गिरने लगा तो जगपति कुमार ने संभाला। जगपति कुमार औरंगाबाद जिले के रहने वाले थे।
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जगपति कुमार को भी पुलिस ने गोली मर दी और एक गोली उनके हाथ में लगी दूसरी गोली छाती मे और तीसरी गोली जांघ में लगी फिर भी तिरंगा को झुकाने नहीं दिया गया| इसके बाद सतीश झा अब आगे आये और तिरंगा को संभाले| ये भागलपुर जिले (बांका) के बरापुरा ग्राम के श्री मथुरा प्रसाद का सुपुत्र थे| उन्हें भी तिरंगा फहराने की कोशिश में गोली मार दी गई। सतीश भी घायल हो गए पर झण्डा नहीं गिरने दिया।
सातवे व्यक्ति उमाकान्त सिंह जो नरेन्द्रपुर सिवान(सारण जिले) के रहने वाले थे जिनकी उम्र मात्र 15 वर्ष थी| उन्होंने आगे बढ़कर तिरंगा उठा लिया और आगे बढ़ने लगे| वे पटना के बी.एन.काॅलेज के द्वितीय वर्ष के छात्र थे। पुलिस दल ने उन्हें भी गोली मर दिया, पर उन्होंने गोली लगने पर भी आखिरकार सचिवालय के गुम्बद पर तिरंगा फहरा ही दिया। इसके बाद वे शहीद हो गए। स्वतन्त्रता प्राप्ति की लड़ाई लगातार बढ़ती गयी और एक दिन स्वत्रंता मिल गयी और इसके बाद इस स्थान पर शहीद स्मारक का निर्माण हुआ। इसका शिलान्यास स्वतन्त्रता दिवस को बिहार के प्रथम राज्यपाल जयराम दौलत राय ने कराया और इसका औपचारिक अनावरण देश के प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद ने 1956 में किया।