sohagara shivadhaam

अपनी पौराणिक महत्ता के कारण विख्यात है बाबा हंसनाथ का नगरी सोहगरा शिव धाम। द्वापरयुगीन है यह मंदिर, और द्वापरयुगीन कई ऐतिहासिक तथ्य जुड़े हैं यहाँ से। ज़िला का सुप्रसिद्ध यह मंदिर अपनी पौराणिक महत्ता को सुशोभित करता हुआ भक्तों की श्रद्धा का केंद्र है।

बाबा हंसनाथ की इस नगरी सोहगरा शिव धाम में द्वापरयुगीन विशालतम शिवलिंग की स्थापना है। जिसे दैत्यराज बाणासुर ने अपनी पुत्री उषा की पूजा-अर्चना के लिए किया था। मंदिर अपनी पौराणिक महत्ता के लिए पूरे देश में विख्यात है। श्रावण मास में लाखों की संख्या में श्रद्धालु जलाभिषेक करने यहां आते हैं। प्रति सोमवार को अप्रत्याशित भीड़ होती है।

मंदिर के संबंध में तमाम मान्यताएं हैं जो भक्तों के लिए श्रद्धाभक्ति और आस्था का प्रतीक हैं। ऐसा बताया जाता है कि पुत्र प्राप्ति की कामना पूर्ण होती है, कुष्ठ रोगी ठीक होने के प्रमाण मिले हैं। जन-श्रुति के अनुसार यहां मन्नतें पूरी होती हैं। श्रावण मास के मौके पर बाबा हंसनाथ की पवित्र नगरी सोहगरा शिव धाम में पूरे मास चलने वाले मेले व जलाभिषेक का काफी महत्व है।

जलाभिषेक :

सोहगरा शिव धाम में स्थापित द्वापर युगीन विशालतम शिवलिंग पर जलाभिषेक करने के लिए बहुत दूर-दूर से शिव भक्त आते हैं, जिससे वहाँ काफी भीड़ होती है। भारत के प्रसिद्ध शिव मंदिरों में से एक सोहगरा शिव धाम, जो बाबा हंस नाथ का मंदिर है, उत्तर प्रदेश की पूर्वी तथा बिहार प्रांत की पश्चिमी सीमा पर गुठनी थाना मुख्यालय से 10 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है।

सरयू नदी से मिली एक पतली नदी, छोटी गंडकी (हिरण्यवती), अपनी धारा से जिस भूमि को सिंचित करती है, उसे उर्वर बनाती है। इसी अद्भुत भूमि पर बाबा हंस नाथ महादेव का पौराणिक शिव मंदिर सोहगरा शिवधाम बसा हुआ है। अपने प्रसिद्धि की सुगंध, इस मंदिर ने उत्तर प्रदेश, बिहार एवं पूरे देश में फैलाई हुई है।

जानकारी के अनुसार, शिव महापुराण के चतुर्थ कोटि रूद्र संहिता के अनुसार भगवान शिव के 21 शिवलिंग हैं जिनमें से 13 ज्योतिर्लिंग हैं और बाबा हंसनाथ उसी रूप में सोहगरा शिव धाम में विराजमान हैं। मंदिर में विशालकाय शिवलिंग स्वयंभू है, जैसा कि शिव पुराण में वर्णित है। सोहगरा शिव धाम में अवस्थित इस प्रसिद्ध मंदिर की स्थापना द्वापर युग में दैत्यराज बाणासुर ने की थी – ऐसी मान्यता है।

अभिलेखों के अनुसार, दैत्यराज बाणासुर की पुत्री उषा जो बड़ी भक्त थी, उसकी पूजा-अर्चना के लिए बाणासुर ने इस मंदिर की स्थापना की थी। मजेदार बात ये है कि आज भी इस मंदिर के 5 किलोमीटर की त्रिज्या में तमाम पुरातात्विक प्रमाण मिलते रहते हैं जिससे इसकी महत्ता और पौराणिकता को बल मिलता है।

सोचिए! कितना अद्भुत और रोमांचक है ये स्थान, जहां जाकर हर कोई मन को शांति व संतोष प्राप्त करता है।

इस मंदिर के क्षेत्र में कई छोटे-छोटे मंदिर और पुराने किलों के अवशेष मौजूद हैं। यहाँ जब भी किसान खेतों की खुदाई करते हैं, तो प्राचीन मूर्तियाँ, तोरण द्वार, सिक्के और अन्य चीजें निकल आती हैं। मंदिर के मुख्य द्वार पर अशोक का चिन्ह है, जिससे लगता है कि इस मंदिर का पुनर्निर्माण सम्राट अशोक ने करवाया होगा।

शिवपुराण में दैत्यराज वाणासुर की कहानी बहुत मशहूर है। उसने सोणितपुर को अपनी राजधानी बनाया था, जो आजकल सोहनपुर के नाम से जाना जाता है। सोहगरा शिव धाम का पुराने समय में नाम सोह गम था, जिसका मतलब होता है “मैं वही हूं” – जो वाणासुर गुप्त मंत्रणा में अपने मंत्रियों के साथ कहते थे। समय के साथ इसका नाम बदलकर प्रचलित हो गया और बाद में सोहगरा हो गया।

यहां वाणासुर द्वारा स्थापित एक विशालकाय शिवलिंग है, जिस पर तलवार के प्रहार का निशान है। कहा जाता है कि सम्राट औरंगजेब ने जब मंदिरों का विनाश करने आया और शिवलिंग को नष्ट करने की कोशिश की, तब जंगल से विषैले सांप और मधुमक्खियाँ निकल आईं। उन्होंने उसे वहाँ से भागने पर मजबूर कर दिया।

तो ये थी सोहगरा शिव धाम की कहानी। अगर आप यहाँ आये तो इन पुरानी कहानियों को ज़रूर याद रखें।शायद आपको भी यहां कुछ नया देखने को मिल जाये!

सोहगरा शिवधाम की महत्ता वर्णन से परे है:

सोहगरा शिव धाम में स्थापित शिवलिंग के बारे में मान्यता है कि यहां पूजा-अर्चना करके पुत्र प्राप्ति की मन्नते पूरी होती हैं। जनश्रुति के अनुसार, अगर कोई कुष्ठ रोगी यहां स्थापित शिवलिंग पर एक माह तक हर सोमवार जल अर्पण करे और उसका लेप प्रभावित स्थान पर लगाए, तो उसका रोग ठीक हो जाता है। पुत्र प्राप्ति को लेकर कई प्रमाण मिले हैं, जैसे महाराजा हंसध्वज के पुत्र तुंग ध्वज ने भी यहां पूजा-अर्चना की थी।

शिव भक्तों की मनोकामनाएं पूरी होती सुनी जा सकती हैं। श्रीमद्भागवत के दशम स्कंध में इसका जिक्र मिलता है कि दैत्यराज की पुत्री उषा ने श्री कृष्ण प्रपौत्र अनिरुद्ध को सपने में देखा। फिर अपनी सहेली चित्रलेखा द्वारा अनिरुद्ध को बंदी बना लिया गया था। इसके बाद, श्री कृष्ण और दैत्यराज के बीच सोणितपुर के पास भयंकर युद्ध हुआ था। उस समय खुद श्री कृष्ण ने भी भगवान शिव की आराधना की थी।

भू-परी चल पहुचते है सोहगरा धाम विसुनपुरावासी:

महाशिवरात्रि के त्योहार पर, विसुनपुरा गाँव के लोग अपने-अपने घरों से भू-परी चल कर सोहगरा शिव मंदिर में जलार्पण करने जाते हैं। यह परंपरा पिढ़ियों से उसी जोश-खरोश के साथ आज भी बनी हुई है। गुठनी के विसुनपुरा गाँव के लोग मंदिर की साढे तीन किलोमीटर की दूरी दो दिन में भू-परी चल कर पूरी करते हैं।

इस परंपरा के बारे में गाँव के सबसे बुजुर्ग लोगों जैसे बाबुराम चौरसिया, शिवधारी गोड़, रामाशिष यादव आदि ने बताया कि यह परंपरा कब से चली आ रही है, इसका हमें कोई ठीक पता नहीं है। लेकिन हमारे बाबा-दादा ये करते आए हैं और अब हमारे बच्चे भी इसे निभा रहे हैं। वैसे जनश्रुति के अनुसार, बाणासुर और श्रीकृष्ण का अनिरुद्ध को छुड़ाने को लेकर युद्ध हुआ था। भगवान की सेना यही ठहरी थी और विजय प्राप्त करने के बाद श्रीकृष्ण शिवदर्शन करने यही से भू-परी चल कर गए थे। तभी से यह परंपरा चलती आ रही है।

हर साल गाँव वाले बड़ी श्रद्धा और भक्ति से इस परंपरा का पालन करते हैं। बच्चों में खासकर बहुत उत्साह होता है। यह सिर्फ एक धार्मिक यात्रा नहीं, बल्कि एक सांस्कृतिक धरोहर भी है जिसे संजोना जरूरी है।

सीवान का धरोहर :-

वैसे तो सोहगरा शिवधाम की धरोहर का वर्णन करना सच में मुश्किल है। लेकिन फिर भी, कुछ बातें बताना जरूरी है। यहां अभी भी कुछ अवशेष मौजूद हैं। सोहगरा शिवधाम के राम जानकी मंदिर के पुजारी जी, जो 105 साल के हैं और जिनका नाम बाबा राधाकान्त दास है, उन्होंने पिछले अप्रैल में एक इंटरव्यू में बताया था – उन्होंने बताया कि हमारे गुरु गोपीदास उर्फ फलाहारी जी महाराज ने 1942 में 145 साल की उम्र में शरीर त्यागा था और हमें सोहगरा शिवधाम के बारे में बहुत कुछ सिखाया था।

मंदिर के आसपास 18 गंडे पोखरा थे, 18 कुँआ थे और छोटे-छोटे 18 शिव मंदिर थे जिनके कुछ अवशेष अब भी देखे जा सकते हैं। इनमें से राम जानकी मंदिर का पोखरा, लमुहा, कूड़हा, जीवनारायन, लमुही, दीघा, मंगुरही, भांगड़ा और लेढा जैसे पोखरे शामिल हैं। खुदाई में मिली शिव पार्वती की पारिवारिक मूर्ति राम जानकी मंदिर की दीवार में लगी हुई है।

कटवासी के जंगल, छोटी गंडकी नदी किनारे का टीला & खुदाई में मिले तमाम पुराने अवशेष काफी महत्वपूर्ण जगहें हैं। यह सब मिलकर सोहगरा शिवधाम की एक महत्वपूर्ण कहानी बनाते हैं।

पर्यटन स्थल बनने की बाट जोह रहा सोहगरा धाम:-

सोहगरा शिवधाम, जो पुरानी स्मृतियों से भरा है, अब भी पर्यटन स्थल बनने की प्रतीक्षा कर रहा है। सरकारी महकमा & पुरातत्व विभाग की लापरवाही ने आज तक इस मंदिर का विकास नहीं होने दिया। भारत सरकार और बिहार सरकार के उच्च अधिकारी आते रहे हैं & आश्वासन भी देते रहे हैं, पर जमीनी स्तर पर कुछ नहीं हुआ। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने 2014 के लोक सभा चुनाव के दौरान गुठनी कार्यक्रम में सोहगरा धाम के विकास की बात कही थी।

2011 में तत्कालीन विधायक रामायण मांझी ने विधानसभा में सोहगरा शिवधाम को पर्यटन स्थल बनाने का प्रश्न उठाया था। उनके तारांकित सवाल संख्या टन-04 के आलोक में सरकार ने जिला से लेकर स्थानीय पदाधिकारियों से पत्राचार शुरू किया & प्रतिवेदन मांगा, जो गया भी लेकिन इस पर कोई काम नहीं हुआ।

मार्च 2017 में, पर्यटन विभाग से एक पत्र जारी हुआ (पर्य०यो०रा०-09/2016/1699/प०वि०) जिसमें सोहगरा मंदिर के विकास हेतु 90,92,600 रुपये की स्वीकृति मिली थी। यह वित्तीय वर्ष 2017-2018 की योजना थी, लेकिन आज तक कुछ नहीं हुआ।

पड़ोसी प्रांत सलेमपुर के सांसद रविंद्र कुशवाहा ने हाल ही के सत्र (फरवरी 2023) में शून्यकाल में स्वदेश दर्शन योजना -2 के अंतर्गत सोहगरा धाम को रामायण सर्किट से जोड़ने एवं सोहनाग धाम एवं दिगेश्वर नाथ धाम सहित अन्य स्थलों को विकसित करने की मांग उठाई थी।

अपने सवाल के पक्ष में बोलते हुए उन्होंने कहा कि सोहगरा शिवधाम एक पौराणिक मंदिर है जो रामजानकी मार्ग के किनारे स्थित है। जनकपुर से लौटते समय माता सीता और श्रीराम ने यहां शिव जी की पूजा की थी।

सोहगरा शिवधाम में जलार्पण करने के लिए कहां से उठाए जाते है जल:

1.गुठनी के ग्यासपुर स्थित पवित्र सरयू नदी तट से (मंदिर से दूरी लगभग 15 किलोमीटर)।
2. दरौली स्थित पवित्र सरयू नदी तट से (मंदिर से दूरी लगभग 28 किलोमीटर)।
3.यूपी०के भागलपुर स्थित पवित्र सरयू नदी तट से (मंदिर से दूरी लगभग 30 किलोमीटर)।
4.शिव धाम क्षेत्र स्थित पवित्र छोटी गंडकी(तत्कालीन हिरण्यवती नदी,मंदिर से दूरी मात्र एक किलोमीटर)।
5.उपरोक्त के अलावा यूपी०के चनुकी स्थित छोटी गंडकी नदी तट,गुठनी के रामजानकी मंदिर छोटी गंडकी नदी तट सहित अन्य तट।

सोहगरा शिव धाम कैसे पहुचे:

1 जिला मुख्यालय सीवान से सड़क मार्ग द्वारा गुठनी(38 किलोमीटर) व मैरवा रेलवे स्टेशन से गुठनी(14 किलोमीटर) और गुठनी के तेनुआ मोड़ से ऑटो द्वारा सोहगरा मंदिर(9 किलोमीटर)।
2.यूपी०के लार रोड रेलवे स्टेशन से ऑटो द्वारा गुठनी(13 किलोमीटर) और गुठनी के तेनुआ मोड़ से ऑटो द्वारा सोहगरा मंदिर(9 किलोमीटर).#

इसके अलावा यूपी०सलेमपुर से लार होते हुए गुठनी के रास्ते या मझौली राज के रास्ते सोहगरा मंदिर जाया जा सकता है।

मन्दिर की व्यवस्था :

मंदिर की व्यवस्था को बेहतर बनाए रखने के लिए बाबा हंसनाथ सेवा समिति & गुठनी प्रशासन समय-समय पर बैठक करते हैं। इसमें कई फैसले लिए जाते हैं ताकि श्रद्धालुओं को दिक्कत न हो। मंदिर के मुख्य पुजारी अरविंद गिरी जी, समिति के अध्यक्ष बृजेश कुमार सिंह, सचिव मिनहाज असगर, उपसचिव डॉ आरबी सिंह, उपाध्यक्ष सुरेंद्र चौहान, कोषाध्यक्ष सत्येंद्र मिश्र, सूचना मंत्री मनोज सिंह, सलाहकार कौशल किशोर सिंह और परमानंद शर्मा के अलावा छह अन्य सदस्य भी शामिल रहते हैं। इस समिति के अलावा भी नवयुवकों का एक दल हमेशा मंदिर की व्यवस्था में लगा रहता है।